जिन्हें सोच के जो लिखदो वो उनके परिभाषा हो जातें हैं।
दर्द में दिल से निकले बोल मातृभाषा कहलाते हैं।
जब चोट दिलों मे लगती है, जख्म मरहम बन जाते हैं।
जिन्हे कोशिश करो भुलाने की याद वो अक्सर आते हैं।
खामोशि चेहरो के, उनपे लगे हजारो पहरो को दर्शाते हैं।
हँसते हुए निगाह भि अक्सर जख्म गहरे दे जाते हैं।
यादें याद नहीं आतिं, भुल न भुले जाते हैं।
जब चोट दिलों मे लगती है, जख्म मरहम बन जाते हैं।
जिन्हे कोशिश करो भुलाने की याद वो अक्सर आते हैं।
बंद आँखे से हकिकत भि फसाने नजर आते हैं।
अपनी हीं निगाहो तब अपने भि न पहचाने जाते हैं।
सिकवे-गिले जितने हों चाहे बयाँ किये न जाते हैं।
जब चोट दिलों मे लगती है, जख्म मरहम बन जाते हैं।
जिन्हे कोशिश करो भुलाने की याद वो अक्सर आते हैं।
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