फलक पे चमकते चाँद का नुर हुँ मैं।
गगन में तपते सुर्य का गुरूर हुँ मैं।
मैं सुर हुँ हर ताल का, हर दिल का फितुर हुँ मैं।
मैं प्यास हुँ समुद्र का, हर निगाह की तलाश हुँ मैं।
मैं निंव हुँ हर शुरूआत का, हर विश्वाश की आस हुँ मैं।
मैं कोशिश हुँ हर जित का, हर हार का पाश्चाताप हुँ मैं।
मैं मंजिल हुँ हर मुशफिर का, हर जिन्दगी की जान हुँ मैं।
दुश्मनो का काल, यारो का महाकाल हुँ मैं।
किसी की आन, किसी का शान, किसी का सम्मान हुँ मैं।
दिवाली का अली, रमजान में राम हुँ मैं।
मिलो मुझसे, पहचानो मुझे,
मैं विश्वगुरू, सोने की चिड़िया, आर्यवर्त महान हुँ मैं।
बस थोड़ा सा बदला हुआ, नया हिन्दुस्तान हुँ मैं।
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